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दबी कुचली कलम दबी कुचली कलम की पीड़ा, कहाँ समझे है

दबी कुचली कलम

दबी कुचली कलम की पीड़ा,
कहाँ समझे है कोई।
देख स्थिति उसकी अब तो,
आँखें भी तब रोईं।
कितनों का था साथ दिया,
अब न उसका कोई।
स्याही ख़त्म तो उसको छोड़ा,
फिर भी बात न कोई।
हद तो हो गई थी तब देखो, 
जब अपनी किस्मत खोई।
फेंक दिया उसको सड़क पर,
थी तब अति ये होई।
बिलख बिलख कर कलम है रोती,
इन्साफ करो अब कोई।
ऐसा भी यहाँ जालिम होगा,
सोचा कभी न कोई।
ऐसे मुझको फेंक गया वो,
जैसे घुन हूँ कोई।
गाड़ी आई सरपट दौड़ी,
कुचल गई मैं रोई।
बची खुची कसर पूरी हो गई,
जब हस्ती भी अपनी खोई।
कैसे कैसे लोग यहाँ पर,
जिनमें दया धर्म न कोई।
.........................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
  #दबी_कुचली_कलम #nojotohindi 

दबी कुचली कलम

दबी कुचली कलम की पीड़ा,
कहाँ समझे है कोई।
देख स्थिति उसकी अब तो,
आँखें भी तब रोईं।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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