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सूरज की सिंदूरी धूप आया बिखर गए प्रकृति पर बसंत

 सूरज की 
सिंदूरी धूप आया
बिखर गए प्रकृति पर
 बसंत सा 
कोंपलों में फूट आए
 कलियां बहार सा
विकसित हुए,घनें हुए
 तपती दोपहर में
कलियां फूल बनें
सुगंधीत हुए 
प्रकृति इतराएं 
*****
मेरी प्रेमिका जब
सुबह की पहली किरण
स्वर्ण रेखाओं सी प्रतिबिंबित होती
जादू बिखेरती छटा लिए
हवा में लहराए
झिलमिलातें
मेरी आंखों में डूबने आएगी
फूलों के बगिया में 
एहसासों ने चित्रण किये 
मन इतराये।
******

संध्या में मादकता की हवाँ बहीं  
आई प्रेमिका प्रेम रस से ओतप्रोत होकर 
खुले केसुओं की चंचलता
 उफ्फ जुड़ा बांधने लगीं
फूलों के तने को 
घेरे खड़ा हुआ
एक तरफ मैं 
एक तरफ वो
 मेरी साँसे 
जब उसकी साँसों से टकराई 
साँसे लम्बी होने लगीं
तने से बंधी फूलों को खोल
मैंने 
 सजा दीं 
प्रेमिका की जूरा को
मानो सृंगार की भूख का समाधान हुए देख 
जूरा सुशोभित हो उठा 
प्रेमिका की शर्माती मुखड़े देख 
मेरा मन सुशोभित हो उठा 
जूरा में अब 
फूल इतराये
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#निशीथ

©Nisheeth pandey
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सिंदूरी धूप आया
बिखर गए प्रकृति पर
 बसंत सा 
कोंपलों में फूट आए
 कलियां बहार सा
विकसित हुए,घनें हुए

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