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सिर पर साजै मोर मुकुट कन्हैया कै, अधर मुरलिया धरी

सिर पर साजै मोर मुकुट कन्हैया कै, 
अधर मुरलिया धरी है गिरिधर की,
पेरि में पहारि में नज़र मोहे कान्ह आवै,
लीला है अपार देखो कैसी हरिहर की,
बाँसुरी की सरगम कानन परि है सखि, 
जाने कैसी कश्ती बनी हूँ मैं भँवर की, 
कहत "शिवानी" वन-वन बन राधा फिरूं, 
नैनन बसी है छबि श्याम श्रीधर की।

©कवयित्री शिवानी सरगम "मानवी"
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#प्रेम_भक्ति_एवं_विश्वास