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कवयित्री शिवानी सरगम "मानवी"
सिर पर साजै मोर मुकुट कन्हैया कै, अधर मुरलिया धरी है गिरिधर की, पेरि में पहारि में नज़र मोहे कान्ह आवै, लीला है अपार देखो कैसी हरिहर की, बाँसुरी की सरगम कानन परि है सखि, जाने कैसी कश्ती बनी हूँ मैं भँवर की, कहत "शिवानी" वन-वन बन राधा फिरूं, नैनन बसी है छबि श्याम श्रीधर की। ©कवयित्री शिवानी सरगम "मानवी" #कवयित्री_शिवानी_सरगम_मानवी #प्रेम_भक्ति_एवं_विश्वास
Insprational Qoute
प्रेम निःस्वार्थ, भक्ति भावार्थ, विश्वास परमार्थ, निश्छलता,निर्मोह,एकरसता का भाव एकार्थ, राग के सार प्रेम से जग को जीता जा सकता है, प्रेम हृदय का मेल, शाश्वत एहसास माना जाता है, भक्ति की महिमा अपरम्पार तार दे भवसागर के पार, पाषाण पर मार्ग बना,सीना चीर बने वो वीर हनुमान, विश्वास बन्धन है,इसके बल पर उम्मीद का हो संचार, बौद्ध हो या महावीर सब ने तोड़ी कुरीतियों की दीवार। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 25. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
DR. SANJU TRIPATHI
प्रेम भक्ति एवं विश्वास ही सब के जीवन की जोड़ी होती है आश। प्रेम भक्ति एवं विश्वास ना हो जीवन में तो होते हैं हम सब निराश। प्रेम भक्ति एवं विश्वास तीनों है एक दूजे की शक्ति और पूरक। विश्वास की नींव से प्रेम बढ़ता है और प्रेम से भक्ति बढ़ती है। ईश्वर को भी अगर प्रेम भक्ति एवं विश्वास से बुलाओ चले आते हैं। ईश्वर प्रेम भक्ति एवं विश्वास के कारण ही तो हमारे साथ रहते हैं। जीवन जीने का आधार और सार ही प्रेम भक्ति एवं विश्वास है। बिना विश्वास के प्रेम नहीं मिलता बिना प्रेम के भक्ति नहीं होती है। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 25. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
मनुष्य रूप में जन्म लिया, ना मन को करो निराश, ध्यानमग्न हो करो अराधना, जगाकर मन में आस। शांतचित्त रखो हमेशा, कर व्याकुलता निज वश में, प्रणय करो प्रभु भक्ति से, बुझेगी हृदय की प्यास। दुखी लाचारों से प्रेम कर, ना करना कभी उपहास, अशक्ति निराधार है जग में, तुम अथक करो प्रयास। घृणा कभी ना करना, जानें कब दीन बंधु मिल जाएं, प्रेम से उनकी भक्ति करो, रखकर मन में विश्वास। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 25. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
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