अगर कहो तो मैं दुनियां बदल भी सकता हूं
तेरे कहे हुए वादों पे चल भी सकता हूं
तुम ही क्या मुझको दगा दोगी इश्कबाजी में
हालाते मजनू से हटकर संभल भी सकता हू
तुमने जाना ही नहीं अब भी मुझको जानेमन
तुमने पत्थर समझा मैं पिघल भी सकता हू
अना को गोद में रखकर मुझे दिखाते हो
हकीर समझों नही मैं बदल भी सकता हू
तेरे जालों के इन हालों से अजी बचना है
कफस ए इश्क से वाहिद निकल भी सकता हूं
कफस - जाल
अना - तकब्बुर , अहंकार, घमंड
हकीर - छोटा, तुच्छ
वाहिद - अकेला,तन्हा,अकेला एक,या जिसका कोई भाग या अंश ना हो
#shayri#Shayari#gazal#viral#GateLight@Anshu writer@Mahi@Sheikh salahuddin Ayub Yogendra Nath Yogi @Umme Habiba