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मुझे तेरी आभा विचलित नहीं करती, और तेरे ओज से संपू

मुझे तेरी आभा विचलित नहीं करती,
और तेरे ओज से संपूर्ण नहीं है धरती,
भले तेरा रूप विशाल होता जाए...
तेरी पियूष की नदियाँ अब नहीं झरती।

©गुस्ताख़शब्द
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