अर्थ और अनर्थ से डरने लगी मै शांती का चोला पहन सब चुप चाप सुनने लगी मै मगर डरती हूँ उन तूफानों से जो रह- रह कर रोज मेरे जहन में जन्म लेते हैं और मेरे भावनाओं के महल कि बुनियाद को जड़ से झकझोर जाते हैं आखिर कब तक खुद से लड़ कर उन्हें रोक पाऊंगी मैं आखिर कब तक हर जख्म को ढक कर यूँही चल पाऊंगी मैं आखिर कब तक अपने गुनहगारोँ को माफ कर पाऊंगी मैं आखिर कब तक इन शाब्दों में आशुओँ को छुपा पाऊंगी मैं । #अंजान#ड़र