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ऐ अजनबी! तुम क्यों चाहते हो की पढ़ती रहूँ तुम्हे

ऐ अजनबी!

तुम क्यों चाहते हो 
की पढ़ती रहूँ तुम्हें 
तुम्हारे लिखे शब्दों में ,
गढ़ती रहूँ तुम्हें 
तुम्हारे बारे में 
मैं क्यों जानना चाहूंगी 
तुम्हारी बातों को 
मैं क्यों मानना चाहूँगी 
मैं क्यों सोचूंगी भला 
कि तुम क्या सोचते होगे
शब्दों के अर्थों में 
मुझे खोजते होगे 
मगर …
मैं ये ज़रूर चाहती हूँ 
कि तुम्हारे ,चारों ओर की हवा 
मुझसे होकर गुज़रे 
और मैं ..उसे छूकर देखूँ 
कि तुम्हारी ख़ुशबू 
कितनी मुलायम है।

©Lalit Saxena
  #ख्यालतुम्हारा 
#एहसास_मेरी_कलम_से