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मैं कहती थी ना मैं काटा हूं मैं हाथ नहीं कभी आऊंगी

मैं कहती थी ना मैं काटा हूं
मैं हाथ नहीं कभी आऊंगी
रही अकेली सर्वदा 
अकेले ही रह जाऊंगी

मैं कहती थी ना काटा हूं
हाथ कभी ना आऊंगी..

मेरे तन पर कांटो के बीच
 रिक्त स्थान नहीं होता 
मैं ही काटो पर नहीं सोती
वरण कांटा मुझ पर सोता 

हर लम्हा घपता है तन में
मैं निशान नहीं मिटा पाऊंगी
आंसू मेरे पूरे तन पर
पर आंखें दिखा ना पाऊंगी

मैं कहती थी ना मैं काटा हूं
हाथ कभी ना आऊंगी...

चाह सभी को फूलों की
मैं काटा ही रह जाती हूं
यह भी मसला  जब देखे कोई
मैं नजर भी नहीं मिलाती हूं

बेकार बहुत हूं ..सुना है मैंने
मैं खुशबू भी.. ना ला पाऊंगी
मैं कहती थी ना काटा हूं
हाथ कभी ना आऊंगी..

ये कैसे ख्वाब सजा बैठी
मुझे हाथ कोई क्यों लगाएगा
मैं काटा हूं मुझे छू कर
जख्म ही तो पाएगा...

ना सुबह सुनहरी खीलती हूं
ना शाम को मुरझा पाऊंगी
मैं कहती थी ना काटा हूं 
मैं हाथ कभी ना आऊंगी

रही अकेली सर्वदा
अकेले ही रह जाऊंगी..!!

©Gudiya Gupta (kavyatri).....
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