ग़ज़ल :- तुम्हारी याद में अब तो सदा ही मुस्कराना है । तुम्हारे ही लिए मुझको यहाँ जी कर दिखाना है ।।१ अदाओं पे फिदा उसकी सुनों सारा ज़माना है । कहो मत बेवफ़ा उसको उसे दिल से लगाना है ।।२ बहुत तुम दूर हो हमसे शिकायत यह नही हमको । रहो तुम खुश जहाँ भी हो दुआ में सिर झुकाना है ।।३ नही अब शौख है मुझको किसी भी चीज का यारो । अगर वह पास है मेरे ,सुनो सारा ख़ज़ाना है ।।४ मिली थी ठोकरें हमको मुहब्बत के चमन में इस । मगर अब प्यार से हमको इसे मिलकर सजाना है ।।५ नही चाहत अधूरी थी हमारी और उनकी भी । मगर यह बदनसीबी है उन्हें दिल से भुलाना है ।।६ अभी अरमान है दिल में मिलन हो इक दफ़ा अपना । कि उनका चूमकर माथा उन्हे दिल से लगाना है ।।७ मिला है प्यार बीवी और बच्चों से मुझे इतना । कि आता याद वह महबूब जो गुजरा जमाना है ।।८ प्रखर की बदनसीबी थी लगन में देर से पहुचा । यही कीमत उसे अब तो सुनो हँसकर चुकाना है ।।९ १६/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- तुम्हारी याद में अब तो सदा ही मुस्कराना है । तुम्हारे ही लिए मुझको यहाँ जी कर दिखाना है ।।१