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भाग २ "दृश्य या अदृ

                               भाग २ "दृश्य या अदृश्य"

एक नया दृश्य जो अभी-अभी देखा है, मैं उस प्रसंग के बारे में बात करता हूं, मैंने दृश्य देखा एक बुजुर्ग व्यक्ति को, मैली सफ़ेद कमीज़ पहने, जांघों के उपर तक काले रंग का फटा हुआ नाम मात्र का वस्त्र, ज़्यादा सफ़ेद और कम काली लंबी दाढ़ी, नाक के सहारे एक दम नीचे जाकर टिकी साधारण रस्सी में बंधी ऐनक, रिमझिम गिरते सावन की बूंदों में तर बतर शरीर, नंगे दोनों पैरों में बंधे काले धागें जाने किस नज़र से उन्हें बचाने की चेष्टा कर रही थी।

होंठों पर कुछ मज़ाक़िया तो कुछ गंभीर सी हंसी लिए, दूर से देखते मेरे पास आये और चार तह में लपेटी एक दस रूपए के नोट देकर, मेरे ठीक पीछे एक शिक्षा भवन की तरफ़ तो कभी मेरी तरफ़ इशारा करते कुछ कहने लगे, मगर मैं सुन नही पाया, जैसे वे कह रहे हो कि यह नोट उस शिक्षा भवन में दे दो या तुम रख लो, मैंने संकुचाते हुए उस दस रुपए के तहदार नोट को पुनः उन्हें लौटते हुए उनसे कहा, आप रख लो हमें नहीं चाहिए, और वे मुस्कुराते हुए उस दस रूपए का नोट लेकर, तुरंत अपने मुंह में डाले निगल गए, और मैं इस दृश्य को देखकर अवाक रह गया और आश्चर्य भरी आंखों से उन्हें देखता खड़ा रहा और वे मुस्कुराते चले गए, वे कम अंतराल में दो बार, पुनः मेरी ओर मुस्कुराते चहलकदमी करते रहे, पहले अंतराल में मैं उन्हें बीस रूपए का नोट देकर कुछ खाने के लिए कहा, वे पैसे लेकर मुस्कुराते चले गए, दुसरे अंतराल में मैंने उन्हें नमस्कार किया और उन्होंने मुस्कुराते कुछ दूर से मुझे पलटकर देखा, 
मानो मेरा अभिवादन स्वीकार कर रहे हो, फ़िर ना जाने कहां चले गए।

मैं सोच रहा हूं मैंने कौन सा दृश्य देखा था, भ्रम का, मिथ्या का, सत्य का या असत्य का या वे कौन थे, भगवान थे, साधु थे, संत थे भिक्षुक थे या मति से विक्षिप्त मात्र व्यक्ति, या भ्रम में मैं था की कहीं वे कोई ब्रम्ह शक्ति तो नही।

©अदनासा-
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