मैं तुम्हे अभी जनता हूं ,और पहले भी जनता था पहले से बदल गई हो ,ये भी पहचानता था, वो झूठी हंसी दोस्तो से उसका राज भी जनता था, तुम्हारे आंखो से बीते दिनों भरे आंसू का राज़ जनता था, मैं तुम्हे करीब से पहचानता था , उन बीते दिनों से जनता था। तुम्हारी अकेली पन का राज़ जनता था ,सोने से पहले का ख्वाब जनता था। मैं तुम्हे करीब से पहचानता था , उन बीते दिनों से जनता था। #मज़बूरी का राज़