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तब मानूँ मैं।। निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं

तब मानूँ मैं।।

निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं।
पतझड़ में बन कुसुम महको तो मानूँ मैं।

अपनी खुशी में तो हर कोई हंसता है,
औरों का बन मुस्कान चहको तो मानूँ मैं।

मधुशाला में तो हर कोई डगमग करता है,
देशप्रेम में बन भगत बहको तो मानूँ मैं।

निज-स्वप्नों की चाह में हर कोई यायावर है,
किसीका बन पथद्रष्टा भटको तो मानूँ मैं।

सबल हो तुम सब पा भी सकते हो,
निजस्वार्थ को बन भीम पटको तो मानूँ मैं।

तेरा मेरा का ही तो बस समर रहा, 
लालच को बन पराया झटकों तो मानूँ मैं।

राज सिंहासन का तो मोह बड़ा है,
अपनो के लिए बन हीम सरको तो मानूँ मैं।

अपने हक की खातिर सब लड़ते हैं,
औरों के लिए बन बिजली कडको तो मानूँ मैं।

सच की बुनियाद हैं बातें, मर्म भरीं,
ख़ुद को बन कृष्ण कह सको तो मानूँ मैं।

©रजनीश "स्वछंद" तब मानूँ मैं।।

निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं।
पतझड़ में बन कुसुम महको तो मानूँ मैं।

अपनी खुशी में तो हर कोई हंसता है,
औरों का बन मुस्कान चहको तो मानूँ मैं।
तब मानूँ मैं।।

निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं।
पतझड़ में बन कुसुम महको तो मानूँ मैं।

अपनी खुशी में तो हर कोई हंसता है,
औरों का बन मुस्कान चहको तो मानूँ मैं।

मधुशाला में तो हर कोई डगमग करता है,
देशप्रेम में बन भगत बहको तो मानूँ मैं।

निज-स्वप्नों की चाह में हर कोई यायावर है,
किसीका बन पथद्रष्टा भटको तो मानूँ मैं।

सबल हो तुम सब पा भी सकते हो,
निजस्वार्थ को बन भीम पटको तो मानूँ मैं।

तेरा मेरा का ही तो बस समर रहा, 
लालच को बन पराया झटकों तो मानूँ मैं।

राज सिंहासन का तो मोह बड़ा है,
अपनो के लिए बन हीम सरको तो मानूँ मैं।

अपने हक की खातिर सब लड़ते हैं,
औरों के लिए बन बिजली कडको तो मानूँ मैं।

सच की बुनियाद हैं बातें, मर्म भरीं,
ख़ुद को बन कृष्ण कह सको तो मानूँ मैं।

©रजनीश "स्वछंद" तब मानूँ मैं।।

निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं।
पतझड़ में बन कुसुम महको तो मानूँ मैं।

अपनी खुशी में तो हर कोई हंसता है,
औरों का बन मुस्कान चहको तो मानूँ मैं।

तब मानूँ मैं।। निशा में बन सूरज चमको तो मानूँ मैं। पतझड़ में बन कुसुम महको तो मानूँ मैं। अपनी खुशी में तो हर कोई हंसता है, औरों का बन मुस्कान चहको तो मानूँ मैं। #Poetry #Quotes #kavita #hindikavita #hindipoetry