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कितनी तिकड़म लेकर चलते हो मन में, शायद इसीलिए र

कितनी तिकड़म लेकर चलते हो मन में,
शायद  इसीलिए   रहते  हो  उलझन  में, 

अवसादों  से  ग्रस्त  मानसिकता  वालों, 
दम  घुटने   लगता   है   तेरा  बंधन  में,

अपने ही अस्तित्व का अवलंबन ढूँढो, 
सर्प  भी  शीतलता  पाता  है  चंदन में,

सारी दुनिया  ठुकरा दे  तब भी अपनी, 
आस  न  डिगने  देना तुम रघुनन्दन में,

जीवन में हर पल ख़ुशियों का सरगम है,
ध्यान  लगाकर  सुनो  हृदय  स्पन्दन  में, 

माया में सुख-दुःख का होगा खेल सदा,
व्यर्थ  न  समय गँवाना अपना क्रंदन में,

पूजा-पाठ, हवन, जप-तप  शामिल सारे,
सेवा, सुमिरन, भजन और प्रभु वंदन में,

अंतर्घट   महके   फूलों   की   ख़ुश्बू   से,
पाता  मन  सुकून  भ्रमरों  के 'गुंजन' में,
     --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #उलझन में#
कितनी तिकड़म लेकर चलते हो मन में,
शायद  इसीलिए   रहते  हो  उलझन  में, 

अवसादों  से  ग्रस्त  मानसिकता  वालों, 
दम  घुटने   लगता   है   तेरा  बंधन  में,

अपने ही अस्तित्व का अवलंबन ढूँढो, 
सर्प  भी  शीतलता  पाता  है  चंदन में,

सारी दुनिया  ठुकरा दे  तब भी अपनी, 
आस  न  डिगने  देना तुम रघुनन्दन में,

जीवन में हर पल ख़ुशियों का सरगम है,
ध्यान  लगाकर  सुनो  हृदय  स्पन्दन  में, 

माया में सुख-दुःख का होगा खेल सदा,
व्यर्थ  न  समय गँवाना अपना क्रंदन में,

पूजा-पाठ, हवन, जप-तप  शामिल सारे,
सेवा, सुमिरन, भजन और प्रभु वंदन में,

अंतर्घट   महके   फूलों   की   ख़ुश्बू   से,
पाता  मन  सुकून  भ्रमरों  के 'गुंजन' में,
     --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #उलझन में#