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अपने पेट में भी वो दांत रखता है उसका सादापन है फक

अपने पेट में भी वो दांत रखता है 
उसका सादापन है फकत देखने को, 

हर दिन नये चेहरे पर वो हो जाता है फिदा 
वो कैश बना फिरता है वो बस देखने को, 

वृद्धाआश्रम की चौखट पे खड़े दोनों सोच रहे थे
इतनी मन्नततो से पाया था क्या यही दिन देखने को,

बस इतनी सी मुलाकात रह गई है हमारी 
वो मेरा स्टेटस देखते हैं और मैं उनके देखने को,

किले की चारदीवारी में कैद शाहजहां सोच रहा था 
लाल किला बनवाया था क्या दिन देखने को,

गलियों में इतना घूमा हूँ कि चक्कर आ गए 
कभी गूगल भी राह दिखाता है बस देखने को, 

आँगन में चूल्हा फूँकती मां यह सोच रही थी 
पहचान कि बहू लाई थी क्या यही दिन देखने को

©Sandeep Albela
  #Likho
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