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गीतिका: कोर्ट कचहरी कोर्ट कचहरी कट्टा। नित्य  लग

गीतिका: कोर्ट कचहरी 

कोर्ट कचहरी कट्टा।
नित्य  लगाते सट्टा॥

साथ चले कठिनाई।
बनकर के तिलचट्टा॥

चार दिनों का जीवन।
स्वीट कभी तो खट्टा॥

भीड़ भरी हैं राहें।
दौड़ वहां सरपट्टा॥

चापलूसियां जारी।
बांध गले में पट्टा॥

नैतिकता को भूले। 
संस्कृतियों में बट्टा॥

हुई जिंदगी दूभर।
मॅऺहगाई का फट्टा॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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