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मैंने सारे गम को छिल कर तुम्हें तराशा है मेरी आँ

मैंने सारे गम को छिल कर
 तुम्हें तराशा है

मेरी आँखे आज भी
पाबंद है तुम तक

"जाना "
तुम्हें पाना होता तो नजरे
 झुकी होती

खोना होता तो नजर
नजर मे बसर करती
पर 

मुझे तो 
तुम्हें होर मे भी
आँखों के मध्य सजाये 
रखना है

किसी एनटिक् की
तरह

क्योकि तुम मेरे जुस्तजू - ए-गम
मे तहफीज किए गए 
आखिरी नक्काशी होगा

©चाँदनी
  #आख़िरी नक्काशी

#आख़िरी नक्काशी

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