'सवालों के कटघरे में' , निरंतर खड़ी रही मैं.. उन सवालों में, जिसका जवाब भी ख़ुद ही देते रहे सब, उनमे पिसती रही मैं.. गवारा नहीं मुझे कि अब कमतर समझा जाये मुझे खुद से, शक करें मेरी क़ाबिलियत पर , सिर्फ इसलिये कि औरत हूँ मैं.. 'सवालों के कटघरे में' खड़े करते रहें मुझे, अपनी उँगलियों पर नचाते रहें मुझे, गवारा नहीं अब कि हर पल परखी जाऊ मैं.. सिर्फ इसलिये कि औरत हूँ मैं.. 🎀 Challenge-291 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 64 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।