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इन्सान कितना स्वार्थी व संकुचित हो गया है, जो खून

इन्सान कितना स्वार्थी व संकुचित हो गया है, 
जो खून के रिश्तों को ही परिवार मान लेता है,
और प्रकृति की देनदारियों से विमुख हो कर के, 
अपनी ज़िम्मेदारियों को नज़रन्दाज़ कर देता है। #प्रकृति 
#स्वार्थी 
#संकुचित
#परिवार
#नज़रन्दाज़ 
#देनदारियां
#yqhindi
#bestyqhindiquotes
इन्सान कितना स्वार्थी व संकुचित हो गया है, 
जो खून के रिश्तों को ही परिवार मान लेता है,
और प्रकृति की देनदारियों से विमुख हो कर के, 
अपनी ज़िम्मेदारियों को नज़रन्दाज़ कर देता है। #प्रकृति 
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