सृष्टि ग्रंथ की अनुक्रमणिका पर अंकित प्रथम अध्याय परिवर्तन का उल्लेख सारी संभावित अवधारणाओं से उपजे प्रश्नचिन्हों पर एक विराम है। अब किसी ताने उलाहने के पृष्ठपोषण की गुंजाइश नहीं। हां ! मैं समझने लगी हूं... अबूझ संबंधों की प्रहेलिका! परिवर्तन की प्रक्रिया का सुलझता स्वरूप। कल-कल बहती नदी की निश्छल सौम्यता और पवित्रता समय और परिस्थितियों की अनुकूलता प्रतिकूलता से अप्रभावित नहीं रहीं। शीत ताप से पिघलती जमती कभी तरल और कभी पाषाण प्रकृति की अवहेलना का सामर्थ्य कहां रखती.... समय के साथ परिवर्तन स्वीकार्य है...! प्रीति #अनकही #अनुक्रमणिका: विषय सूची #पृष्ठपोषण : सहायता #प्रहेलिका : पहेली #परिवर्तन #yqhindi #yqhindiquotes सृष्टि ग्रंथ की अनुक्रमणिका पर अंकित