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कहने की बात है, उम्र भर कौन साथ निभाता है , बुरे व

कहने की बात है, उम्र भर कौन साथ निभाता है ,
बुरे वक़्त में अपना साया भी नजर नही आता है 

छोड़ जाता हैं अक्सर, वो ही शख़्श  दोराहों पर ,
जो जिंदगी में साथ,जीने मरने की कसम खाता है .

 लगती है जब, सीने पे, कोई चोट इस कदर ,
बशर अंदर से कितना, टूट कर बिखर जाता है.

फ़िर, संम्भाले से, कहाँ ,ये संम्भलता है दिल, 
कितना रोता है ,कोई भी नही समझ पाता है .

देने वाले तो ,घाव देकर, चले जाते हैं दुनियाँ में,
उसका क्या हश्र होता है, कोई नही जान पाता है .

हाल हो जाता है बेहाल, उसका रो- रो कर ,
 चैन की नींद, सोता नही ,तड़फ में मर जाता है.

©Dr Manju Juneja
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