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तृप्ति की कलम से एक कविता दीवारें कहतीं हैं कि

तृप्ति की कलम से
एक कविता

दीवारें कहतीं हैं कि 
       अब तोड़ दो बंधन सारे।
हम भी जग मे चमकें
                ऐसे जैसे चमके तारे।।
राग द्वेष, मद की दीवारें
           ऊपर  उठती जातीं ।
नफ़रत औ ईर्ष्या  मन की
     दिन पर दिन बढ़ती जाती ।
तोड़ दीवारें आओ बैठे
        बनकर के हमजोली।
कान्हा जैसे आओ हम भी
         बना लें अपनी टोली।
चार दिनों का जीवन अपना
         हँसी -खुशी तब बीते।
"तृप्ति" मिले हर मन को
      औ कोई सपना न रीते।।
दीवारें कहतीं हैं
        हमने सुनी बहुत-सी बातें।
किसकी हँसकर, किसकी रोकर
                  गुजरी हैं कुछ रातें।
स्वरचित 
तृप्ति अग्निहोत्री  
लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश

©tripti agnihotri
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