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प्रेम की विडंबना यही कि इसकी कभी अकाल मृत्यु नही

प्रेम की  विडंबना यही 
कि इसकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है,
एक निरर्थक विवशता बनकर 
प्रेम जीवित रह जाता है..... 

 विवशता भूखे पेट की,,
अधूरे संवाद की,,
अपनी अव्यक्त अभिव्यक्तियाँ लिए तलाशता रहता है वह स्थान जहाँ वह खुद को तसल्ली दे पाए...
 
 काश !; कोई होता दुशाशन इस युग में भी 
करता चीरहरण मेरी दिल में फैली ख़ामोशी की 
खींच लेता सारी लज्जा मेरी
और मैं पुकार उठता तेरा नाम...

"सखी" "सखी" "सखी

©Raj Alok Anand
  #सखी

#सखी

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