सखी वैभव विलास के अति मोह में गांठ पड़ने लगी आपसी रिश्तों की डोर में और अब तो खुले बगैर ही गांठ जल रही है सुलझने की बजाय सुलगने को मचल रही है राख में तब्दील होके भी अपने बल छोड़ जाएगी रस्सी रिश्ते की आंखों को सजल छोड़ जाएगी बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla बल