थी दोनों की राह भी एक, जुबां पर था ज़िक्र एकदूसरे का ही, धड़कती थी दो धड़कने एक ही दिल में, किरदार दो लेकिन रूह तो एक ही थी। पता नहीं क्यों मजबूर हुए हम, के दोनों ने खुद ही बिखेर दिए अपने ख़्वाब, अब इसे वक़्त का तकाज़ा समझो, या फिर समझो कुदरत का कोहराम। हंसती खेलती दो ज़िंदगी, पल भर में ही जुदा हो गई, तन्हाइयों का आलम कुछ यूंँ गुजरा हम पर के, दो साँसे अलग हो गई एक ही दिल से। वक़्त का सितम तो देखो, वो वहांँ आह से मर रही है, और मैं यहांँ जीते जी मर रहा हूंँ, फ़ासला दोनों का इतना बढ़ गया है कि, चाहकर भी दोनों वापिस एक नहीं हो सकते। -Nitesh Prajapati ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1066 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।