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पैदा होते ही बेसहारा था मैं, हर कदम पे हारा था मैं

पैदा होते ही बेसहारा था मैं,
हर कदम पे हारा था मैं,
दुनियां की नजरों में हमेशा एक बेचारा था मैं,
आंखें खुली तो ना सिर पे मां का हाथ मिला,
लड़खड़ाया जब भी ना बाप का साथ मिला,
खुद ही गिरता खुद ही ऊठता,
खुद ही खुद को संभालता था,
मैं खुद ही तो था जो मुझको पालता था,
अक्सर आसूं भी गालों पे ही सूख जाते,
अ जिंदगी कोई तो होता उस मासूम बचपन में,
जिससे हम भी कभी कभी रूठ जाते,

©Dr Vikash Sharma
  हर कदम पे हारा था मैं

हर कदम पे हारा था मैं #शायरी

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