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क्यों इतने सपने पालती हो मन में.. जब सपनों के पंख

क्यों इतने सपने पालती हो मन में..
जब सपनों के पंख काट दिए जायेंगे एक दिन
तू छटपटाएगी चीखेगी चिल्लाएगी
और तेरी आवाज़ किसी की रूह तक न जायेगी
तू स्त्री है पराए घर में तू पराई ही रह जायेगी
तेरे मन के घाव पर मरहम कौन लगाएगा
हर घड़ी बस तू ही छलनी की जायेगी
हर दोष तेरा होगा, और सारी दलीलें उनकी
तू कहेगी किससे.. तेरी बेगुनाही सुनी न जायेगी
तू स्त्री है सारे अपराध तेरे
सूली पर बस तू ही चढ़ी जायेगी..

©Swati kashyap
  #स्त्री