जो घर से इतनी दूर है शायद ये मजबूर है लगता है मजदूर है शहर बसाने, शहर चलाने ये मजबूरन लाए जाते है फिर असभ्य बोल मार भगाए जाते है इनको कोई क्या मारे ये पहले ही समय के मारे है बेहद लाचार और बेचारे है क्यों की बेचारे है जब तब मारे जाते है क्यों की जब तब मारे जाते है ये सत्ता के दुलारे है क्यों की राजनीति जरूरी है इनको रखना मजबूरी है जब तक इनकी मजबूरी है तब तक ये मजदूरी है ©मिहिर #मजदूर है