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होनी-अनहोनी से ढक गया है निशीथ की पहर । सोने-चाँदी

होनी-अनहोनी से ढक गया है निशीथ की पहर ।
सोने-चाँदी जैसे मन रहते थे अब मन है पत्थर के घर ।

कभी बसते थे ख़ूबसूरत नज़ारे नज़रों में ,
अब मैं परेशान हूँ वो खूबसूरत नज़ारे है किधर ।

रंग रूप सुन्दर प्रकृति पर बर्फ की सफ़ेदी लिए,
कभी लगते थे रास्ते मुस्कराए मुझे देखकर ।

प्रकृति के सुंदर चेहरे को देख मेरा मन सुन्दर ,
अक्सर सोचता काश यहां होता सनम एक अपना भी घर ।

सुनकर छू कर निकलती हवाएं पगडंडियाँ हँस पड़ीं,
तू गिर मत अड़ा रह देख इतना न डर हौसला बुलंद कर ।

ठण्डी-ठण्डी हवाएँ गले से मिलती,
और कहने लगती हो सुहाना सफ़र ।

फिर न जाने कहाँ से आया अनहोनी चीड़ के पेड़ तकदीर में उड़ने लगें,
तकदीर की टहनियाँ टूटने लगे झड़ने लगे उड़ते परिन्दों के पर ।

जो दिल था मेरा भी प्रकृति की तरह फूल-सा,
क़हर पर कहर इस पे होने लगा मौसमों का बेअसर ।

मुस्कराते हुए हँसी वादियाँ गुमनामी से ढक गए,
अनहोनी कह रही हैं हमें देखिएगा अब हर तरफ इधर उधर ।

बर्फ़ की सीढ़ियाँ, बर्फ़ की चोटियाँ हो गई अंधी 
बस आवाज़ आती हैं बुलाती हमें आइएगा इधर ।

तुम्हारे मेरे जीवन से जाने के बाद  तेरी जुल्फ़ों-सी काली हो गयी रातेँ सारी,
 बिछी चाँदनी जिसे ओढ़ता था है अब किधर  ।

न जाने किसकी काली नज़र ओढ़ ली , यारो ! लड़ने लगा मौत से,
अनहोनियों पहाड़ों सी ऊंची है आती नज़र ।

ज़िन्दगी ख़ूबसूरत थी पहाड़न जैसी बनाये थे चाल,
हर कठिनाई के साथ जिया  और हार कर भी जीता पहाड़ी सफ़र ।

हम संधर्ष के अर्थ अनर्थ दोनों रस जीवन में पाए नए,
देख देख जीवन का हर पहलू ' निशीथ ' मन हो गया पथर ।
#निशीथ

©Nisheeth pandey
  #DhakeHuye 
होनी-अनहोनी से ढक गया है निशीथ की पहर ।
सोने-चाँदी जैसे मन रहते थे अब मन है पत्थर के घर ।

कभी बसते थे ख़ूबसूरत नज़ारे नज़रों में ,
अब मैं परेशान हूँ वो खूबसूरत नज़ारे है किधर ।

रंग रूप सुन्दर प्रकृति पर बर्फ की सफ़ेदी लिए,

#DhakeHuye होनी-अनहोनी से ढक गया है निशीथ की पहर । सोने-चाँदी जैसे मन रहते थे अब मन है पत्थर के घर । कभी बसते थे ख़ूबसूरत नज़ारे नज़रों में , अब मैं परेशान हूँ वो खूबसूरत नज़ारे है किधर । रंग रूप सुन्दर प्रकृति पर बर्फ की सफ़ेदी लिए, #SunSet #lovequotes #Remember #कविता #Ambitions #Likho #Streaks #Tuaurmain #merasheher #BhagChalo

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