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फरिश्ते भी अब कहाँ जख्मों का इलाज करते हैं, बस तसल

फरिश्ते भी अब कहाँ
जख्मों का इलाज करते हैं,
बस तसल्ली देते है कि
अब करते है, आज करते है।

उनसे बिछड़कर हमको तो
मिल गयी सल्तनत-ए-गजल,
चलो नाम उनके हम भी
जमाने के तख्तों-ताज करते है।

नए चेहरों में अब पहली सी
कशिश कहाँ है बाकी,
अब तो बस पुरानी तस्वीर
देखकर ही रियाज करते है।

और एक दिन चाचा ने आकर
ख्वाब में हमसे ये कहा,
शायरी करो "राहुल" यहाँ बस
शायरों का लिहाज करते है।

©Rahul Bhardwaj
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