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थोड़ा बिगड़ती है,ज्यादा संभलती है बिन कहे सब समझती

थोड़ा बिगड़ती है,ज्यादा संभलती है
बिन कहे सब समझती है
नदानियो की भरमार है
बड़ो सी सलाहकार है
अनजानी गिटपिट करे कभी 
कभी हमसे भी ज्यादा समझदार है
गुस्सा चुटकी में करती है
बात हो जब अपनो की
पल भर में ही भूल भीं जाया करती है
दोस्त ,बहना कितने रिश्तों का नाम है तू
मां की लाडली और हम सब की जान हे तू
अधूरा अधूरा सा वो हर पल लगता है
साथ तेरा थोड़ा सा खलता है

©Neha Bhargava (karishma)
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