इस मरुस्थलीय रस हींन जगत में ज़ब कोइ कोयल मदभरे. मधुर गीतसुनाये तो उसेपागल नही तो क्या कहा जाये इन विरानो और सन्नाटों में कोयल की ऐसी मधुर वाणी सुनकर ये आभास होने लगता हैं जैसे अभी सब कुछ समाप्त नही हुआ हैं ऎसी चिलचिलाती धूप में तपती हुई रेत क़े टीलों में अभी भी कुछ आनंद क़े बीज शेषहै ज़ो कोयल की कूकती वाणी क़े उर्वरको से पोषित होकर फूल खिलाने में सक्षम हैं ©Parasram Arora कोयल की कूक......