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जब तक वो बोझ मानता रहा, उसको दुख सालता रहा सांस ले

जब तक वो बोझ मानता रहा, उसको दुख सालता रहा
सांस लेने तक मे तकलीफ होती थी, अपनी बेटा बेटी सबको मरता रहा

शरीर, मन और आत्मा से एक ही आवाज़ आती थी,
क्या होगा इनका कुछ कर भी पाएंगे, पढ़ाई तक तो होती नहीं अभी
शायद डंडे के भय से कोल्हू के बैल की तरह बात मान लें
थोड़ा बहुत जो हो सकता है , उतना ही सही से ध्यान दें

उसको जो सही लगा बिना किसी की सुने बस वही प्रयास करता रहा ।

उसने तो अपना सर्वस्व लगा दिया, पर ये क्या? उनको इंसान नहीं बना पाया था।
पर बचपन से बैल बनना ही सीखा था, जो सिखाया ही नहीं वो कैसे आना था।

अब वो बोझ मानना बंद कर चुका था, बेटा बेटी का काम चल पड़ा था
उससे कोई बात नहीं कर पाता था, उसके कोई पास नहीं आता था

वो पिता तो बन गया पर एक इंसान की तरह अपने बच्चों को अपना नहीं पाया 
सिर्फ कुछ देर ही सही तुम खुश तो हो ? ये जान नहीं पाया 
अंत तक उसका छवि एक भय के साए की तरह रही
वो खुद अपने रक्त से लगाव नहीं बना पाया।


जब समय निकल गया उसके बाद वो अपनापन खोजता रहा
जब तक..........।

©mautila registan(Naveen Pandey)
  #Problems #responsibility #bachapan