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उल्फत भरी ये ज़िन्दगी में लहू का रंग बदलते देखा '

उल्फत भरी ये ज़िन्दगी में लहू का रंग बदलते देखा

'चोला' उतार कर लोगों को नदी में फेंकते हुए देखा 

किससे शिकवा करें साहब, मिट गई 'लक्षण'  रेखा 

कलियुग में सबने औलादों को यहाँ "बदलते" देखा

पूर्वजों के आँखो से तब भी अश्रु - धारा बहते देखा

आज तो प्रचालन है "घर - घर" देखा एक ही लेखा

©अनुषी का पिटारा..
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