स्वार्थी लोगो का रिश्ता बतलाते कैसे । उनको अपना कहकर आज बुलाते कैसे ।। हम प्यादे थे सुन उठकर आ जाते कैसे । उसने दाँव लगाया तो पछताते कैसे ।। सच्चाई से डर लगता है अब तो मुझको झूठी बातें उनको आज सुनाते कैसे ।। जख्म़ अभी सब हरे हमारे आकर देखो । बोलो ना जख्मों पर हम इतराते कैसे ।। बनकर वो हमदर्द हमारे पहलू बैठे । अब उसका ये प्यार भला झुठलाते कैसे ।। उठा रहे थे हम दुल्हनिया का जब घूँघट । बोलूँ कैसे यार हमी शर्माते कैसे ।। उतरा चाँद हमारे आँगन खुशियां छाई । देख प्रखर को आज यहाँ मुस्काते कैसे ।। ०५/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR स्वार्थी लोगो का रिश्ता बतलाते कैसे । उनको अपना कहकर आज बुलाते कैसे ।। हम प्यादे थे सुन उठकर आ जाते कैसे । उसने दाँव लगाया तो पछताते कैसे ।। सच्चाई से डर लगता है अब तो मुझको झूठी बातें उनको आज सुनाते कैसे ।।