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आज भी अपने हिस्से के अधिकार से वंचित क्यूं है स्



आज भी अपने हिस्से के अधिकार से वंचित क्यूं है स्त्री ? पुरुष का पुरुषार्थ आड़े आ जाता है, या फिर भय की कहीं पित्रात्मकता के अधिकार से ही वंचित ना हो जाए कहीं। अपनी कमजोरी को छुपाने का हर संभव प्रयास करता है पुरुष या फिर स्त्री से हार स्वीकार करने की क्षमता नही है उनके पास । केवल अपनी प्रितात्मकता के दम पर ही स्त्री के अस्तित्व का दमन करने की शक्ति प्राप्त है इन्हें। एक नारी जो प्रसव पीढ़ा सहकर नवसृजन करती है क्या उसके कंधे इतने कमज़ोर हैं की वो मृत देह को नही संभाल सकते ? फिर क्यों मुखाग्नि देने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ पुरुष को ही है प्राप्त ? 
रश्मि वत्स

©Rashmi Vats
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