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आज़ाद नज़्म --मुर्दा लफ़्ज़ एक नज़्म लिखी है मैंन

आज़ाद नज़्म --मुर्दा लफ़्ज़

एक नज़्म लिखी है मैंने, 
नज़्म क्या काग़ज़ की कब्र में
कुछ ज़िंदा लफ़्ज़ दफ़नाये हैं
न इनकी शक्ल नज़र आती है
न कोई आवाज़ आती है
लफ़्ज़ तरतीब में बस खामोश खड़े हैं
और इंतज़ार में हैं कोई गुनगुना ले इनको
कि शायद फिर से इनकी धड़कने जागें
और जिंदा हो जायें मेरे दफ़नाये हुए लफ़्ज़

©Abr Shayar
  मुर्दा लफ़्ज़ . 
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