ब्रह्मांड थम सा जाता होगा ; मेरी कविताओं के अल्पविराम का तुम्हारी आत्मा के स्पर्श से ।। जमीं का अंतर्मन भी सिहर जाता होगा , जब तुम मेरे शब्दों के विक्षेद को उच्चारित करते होगे ।। - Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में ....) मैं अक्सर सोचती हूं कि कितने भाव बदलते होंगे इस ब्रह्मांड के....? जब भी तुम मुझे पढ़ते होगे ; शब्दशः बसंत खिल आता होगा ना जब मुस्कुराते होगे ।। मेरे अंतर्मन के पन्नों में रखा मुरझाया गुल भी खिल