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कभी शिगूफ़ा कभी अजायब रहा, यूँ ज़ीस्त का मेरा ग़म साह

कभी शिगूफ़ा कभी अजायब रहा,
यूँ ज़ीस्त का मेरा ग़म साहब रहा।

तूने नफ़रत से नश्तर चुभोगा मुझे,
सो लुत्फ़-ए-चुभन भी गायब रहा।

ख़ुदा से ज़ियादा था चाहा जिसे,
वो मोहब्बत रही न मेरा रब रहा।

पारो  की  हर  शय  घुँघरू  तले,
देवा  कोई  फ़िर  नया  दब  रहा।

जानी गली जब दीवाने की उसने,
बेअदबी भरा फ़िर  बाअदब रहा।

ख़ुदाया  'डिअर'  तेरे रहते  मिटा,
हमदम  मेरा  तू  बता  कब  रहा। शिगूफ़ा - मज़ाक की बात, अजायब - आश्चर्य, ज़ीस्त - जिंदगी
नश्तर - छुरी, बाअदब - तमीज़दार, सभ्य

#dearsdare #gazal #ghazal #yqdidi #yqgazal #love #life
कभी शिगूफ़ा कभी अजायब रहा,
यूँ ज़ीस्त का मेरा ग़म साहब रहा।

तूने नफ़रत से नश्तर चुभोगा मुझे,
सो लुत्फ़-ए-चुभन भी गायब रहा।

ख़ुदा से ज़ियादा था चाहा जिसे,
वो मोहब्बत रही न मेरा रब रहा।

पारो  की  हर  शय  घुँघरू  तले,
देवा  कोई  फ़िर  नया  दब  रहा।

जानी गली जब दीवाने की उसने,
बेअदबी भरा फ़िर  बाअदब रहा।

ख़ुदाया  'डिअर'  तेरे रहते  मिटा,
हमदम  मेरा  तू  बता  कब  रहा। शिगूफ़ा - मज़ाक की बात, अजायब - आश्चर्य, ज़ीस्त - जिंदगी
नश्तर - छुरी, बाअदब - तमीज़दार, सभ्य

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शिगूफ़ा - मज़ाक की बात, अजायब - आश्चर्य, ज़ीस्त - जिंदगी नश्तर - छुरी, बाअदब - तमीज़दार, सभ्य #dearsdare #gazal #ghazal #yqdidi #yqgazal love life