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शेषांक भूली दास्ताँ जहां तुमसे आख़िरी मुलाकात हुई

शेषांक भूली दास्ताँ

जहां तुमसे आख़िरी मुलाकात हुई थी,पर वहां भी कुछ ना मिला।मुझसे नज़रें चुराते वक़्त जिन जिन चीज़ों को तुम्हारी नज़र ने छुआ था वे अब शायद वहाँ न हों।तुम्हें छूकर गुजरी हवा ने जिन शाख़ों को हिलाया था उनके पत्ते अगली ही पतझड़ में गिर गये थे।तुम जहां खड़े थे वहां की धूल हवा उड़ा ले जा चुकी थी।उस एक पल में मर जाने की ख़्वाहिश के साथ एक मुद्दत बीत गयी!वो तुम्हारा वक़्त था शायद तभी तो बातें भी सब तुम्हीं ने कीं।मैं तो बस सुन रहा था देख रहा था हमारे बीच बढ़ रही दूरियों को, मगर देखो ना वक़्त बदल गया है। कहानियों से नफ़रत करने वाला मैं अब ख़ुद कहानियों का पुलिंदा बनकर रह गया हूं हां,उसके बाद में कविताएं शायरी,कहानियां   लिखने लगा हूं मगर केवल इसीलिए कि अब तुम्हारे यादों का बोझ हटा कर एक ऐसा किरदार बना पाऊँ जिसमें मुझे ख़ुद को ढूंढना न पड़े,जो मुझे ख़ुद में ढूंढ ले,इस यादों से निकाल ले...और जिसके सहारे बाकी की जिंदगी पुरसुकूं जी लूँ।जानते हो बहुत तकलीफ़ होती है कहानियां लिखने में...मेरी डायरी से

©Pawan Dvivedi
  #ArabianNight भूली दास्ताँ

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