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रोज़ जीना, रोज़ मरना, बेवज़ह स्वीकार है, रूग्णता, नि

रोज़ जीना, रोज़ मरना, 
बेवज़ह स्वीकार है,
रूग्णता, निरीहता, 
विलाप पर संताप है।
दुःख है, दर्द है, रुदन है, 
असहनीय चीत्कार है।
सहज ही है पर उठाता, 
देखो यह व्यभिचार है।

©HINDI SAHITYA SAGAR
  रोज़ जीना, रोज़ मरना, बेवज़ह स्वीकार है,
रूग्णता, निरीहता, विलाप पर संताप है।
दुःख है, दर्द है, रुदन है, असहनीय चीत्कार है।
सहज ही है पर उठाता देखो यह व्यभिचार है।
#hindisahityasagar  #poetshailendra

रोज़ जीना, रोज़ मरना, बेवज़ह स्वीकार है, रूग्णता, निरीहता, विलाप पर संताप है। दुःख है, दर्द है, रुदन है, असहनीय चीत्कार है। सहज ही है पर उठाता देखो यह व्यभिचार है। #hindisahityasagar #poetshailendra #कविता

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