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White "नि:श्छल प्रेम रूठा विद्यार्थी" लगता हैं आज

White "नि:श्छल प्रेम रूठा विद्यार्थी"

लगता हैं आजकल
वो हमसे रूठ सी गई हैं।
बिना किसी खता के
कहीं टूट सी गई है।।
लगता है........

करती नही सांकेतिक भाषा
का इनदिनों प्रयोग 
मस्ती की अपनी महफिल में
व्यस्त शान्त चुप हों गईं हैं।
लगता हैं..........

हैं बड़ी मतवाली
अनुपम नखरेवाली दिलवाली
पर पता नहीं क्यों उसकी
पलके अब झुक सी गई हैं।
लगता हैं.....

करता हूं अक्सर उस कली
मनचली की तारीफें।
इसलिए शायद अब भाव खाने लगी है 
 किसी दुनियां में लुप्त हों गई है।
लगता हैं......

दिया करती थीं उत्तर
मेरे प्रश्नों के कभी
पर प्रतीत होता हैं की
सबकुछ भूल रूप गई हैं!
लगता हैं.....

सोचता हूं क्या कुछ
गलती हुईं हैं हमसे
जो खुली किताबें देखकर भी
मंजिले गुप्त हों गई हैं.!
लगता हैं....

चुराने लगी है नज़रे अब
पढ़ने की आदत लगाकर
दूसरो को वाचाल बनाकर 
 खुद मितभाषी सुसुप्त हों गईं हैं।
लगता हैं.....

ताकते रहते हैं उसको
लाल लाल मेरे नैन।
मिले न चैन दिन क्या रैन 
यादें उसकी लुफ्त हो गईं हैं।
लगता......

क्या करे क्या न करे समझ
हमे कुछ आता नहीं।
झंझावत संघर्ष पथ मे
जीवन जैसे लूट गई हैं।
लगता हैं........

हैं मनचला विश्वासी ये सारथी 
स्नेह सागर का तैराकी
अबोध निश्छल बालक विद्यार्थी 
फिर क्यों वो रथ छूट गई हैं
लगता हैं....

हैं कारण तो बताओं सही
एकांत में मत इतराओ कहीं
दिल की बात बतलाओ जरा
क्या विद्यार्थी के प्रेम से अब ऊब गई हैं!
लगता है.......

स्वरचित!-: प्रकाश विद्यार्थी

©Prakash Vidyarthi
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