ग़ज़ल :- जश्न अपनी हार का इन महफ़िलों में देख लो । ज़ाम टकराते हुए इन अफ़सरों में देख लो ।।१ चीख कितना यह रहे अधिकार को तेरे लिए । अब ठहर कर आप इनकी नीतियों में देख लो ।।२ ये उपासक प्रेम के कितने बड़े है क्या कहूँ । आज इनपे आप उठती उँगलियों में देख लो ।।३ लूटकर ये अस्मते खूँ की मनाये होलियाँ । बेजुबाँ की बंद अब इन सिसकियों में देख लो ।।४ कौन तुमको था वहाँ सोचों हरा सकता भला । आ कभी तू बीच अपने दोस्तों में देख लो ।।५ प्यार के काबिल नही है वह सितमगर भी यहाँ । आप उनकी अब गली के आशिकों में देख लो ।।६ नाम तो बदनाम है बस अब तयायफ का प्रखर । बिक रही उनकी वफ़ा अब दौलतों में देख लो ।।७ ०४/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- जश्न अपनी हार का इन महफ़िलों में देख लो । ज़ाम टकराते हुए इन अफ़सरों में देख लो ।।१