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किसको है परवाह तुम्हारी ? यूँ तो सबको चाह तुम्हार

किसको है परवाह तुम्हारी ?

यूँ तो सबको चाह तुम्हारी
किसको है परवाह तुम्हारी ?

चाहत का यह भ्रम है जबतक
खुशियों की दरगाह तुम्हारी।

जब टूटेगी भ्रम की पसली
तब निकलेगी आह तुम्हारी।

तुमने पाया मुफ्त नहीं वह
करनी की तनख्वाह तुम्हारी।

जूठे बैर के प्रेम को जाएँ
'हरि' वह पथ है राह तुम्हारी।

- कवि हरि शंकर।

©Hari Shanker Kumar
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