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मैं एक इंसान हूं पर , आज वतन के काम आया हूं । रोन

मैं एक इंसान हूं पर ,
आज वतन के काम आया हूं ।

रोना भी आता है कभी-कभी ,
जैसे रोशन में भी अंधेरा हूं ।

कम्बख़त बात सरहद की करता हूं ,
फिर डर जाता हूं ।

बात आती है  एक फ़ौज की,
वो भी एक इंसान हैं ।

 फ़ौजी है ,
सरहद का परिंदा है ।

सरहद पे कुर्बान है ,
वतन में गूंजता उसका नाम है ।

फ़ौजी है साहब ,
जान देकर खुद को बताता अमर जवान है।

©Gautam Kumar
  मैं एक इंसान हूं साहब 😔🍁
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