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मुसाफ़िर ______ गुज़र कर भी जो ना गुज़रे  दिल म

 मुसाफ़िर
 ______

गुज़र कर भी जो ना गुज़रे 
दिल में ऐसे ठहर गया है

ख़ुद ना रुके कोई रोक भी ना सके 
हर ग़म से गुज़र आगे निकल गया है

झूठ दिखावे फ़रेब से बचते-बचाते 
सीरत सादगी के लिबास से संवर गया है

फ़र्ज़ कर्ज़ मर्ज़ की क़ैद से उबर 
वफ़ा दगा नफ़ा के मोह से आगे बढ़ गया है

मनीष राज

©Manish Raaj
  #मुसाफ़िर