ग़ज़ल :- आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते सभी गाँव में देखकर । कौन सा धर्म इसने निभाया नहीं ।।३ कापतीं जब दिखी उँगलियाँ मातु की । हाथ कान्धों से उनका हटाया नहीं ।।४ हाथ जो थामकर सीख चलने लगे । इल्म वो भी अभी तक भुलाया नहीं ।।५ ये अदब जो बड़ो के लिए आज है । दोस्त बाजार से देख लाया नहीं ।।६ झूठ सारी हुई आज बातें यहाँ । पाँव माँ बाप के मैं दबाया नहीं ।।७ मान जिनको लिया दोस्त गुरुदेव है । आज सागर वही हैं छुपाया नहीं ।।८ बन गया है सबब अब प्रखर हार का । राज जो था किसी को बताया नहीं ।।९ १९ ०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते सभी गाँव में देखकर । कौन सा धर्म इसने निभाया नहीं ।।३