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किराया ––––– दरअसल ,हमारी खिड़की से थोड़े–थोड़े पह

किराया
–––––
दरअसल ,हमारी खिड़की से
थोड़े–थोड़े पहाड़ दिखते है ,कभी–कभी
बादल धुंध और कुहासा छटने पर
भूली बिसरी यादों की तरह, जब मैं
लौटता हूं शाम को मजदूरों की भीड़ के साथ
थका हारा तब अचानक से
मेरी बगल में समूची भीड़ का नेतृत्व
करने आ जाती है तुम्हारी क्रांतिकारी स्मृतियां
वो मुझे युद्ध में अकेले खड़े पहाड़ों जैसी लगती है 
शायद दुनियां का सबसे पहला क्रांतिकारी
अपनी प्रेयसी से
पहाड़ों की तरह प्रेम करता होगा या हो सकता है
क्रांति और प्रेम की संकल्पना भी पहाड़ों से हुई हो
पता नही पर मुझे पहाड़ पसंद है
बस इसी लिए मैं रुका हूं यहां की 
पहाड़ों को देखने के लिए 
मुझे कभी कोई किराया नही देना पड़ता
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©Sultan Mohit Bajpai
  किराया
–––––
दरअसल ,हमारी खिड़की से
थोड़े–थोड़े पहाड़ दिखते है ,कभी–कभी
बादल धुंध और कुहासा छटने पर
भूली बिसरी यादों की तरह, जब मैं
लौटता हूं शाम को मजदूरों की भीड़ के साथ
थका हारा तब अचानक से

किराया ––––– दरअसल ,हमारी खिड़की से थोड़े–थोड़े पहाड़ दिखते है ,कभी–कभी बादल धुंध और कुहासा छटने पर भूली बिसरी यादों की तरह, जब मैं लौटता हूं शाम को मजदूरों की भीड़ के साथ थका हारा तब अचानक से #SAD #poem #कविता #nojotoLove #nojotoenglish #nojotonews #treanding #moonnight #sultan_mohit_bajpai

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