ग़ज़ल :- शीश ध्वज को सदा ही झुकाए बशर । आन पर जान तक सब लुटाए बशर ।। याद उनको कभी तो किया कर बशर । शीश जो है वतन पर कटाए बशर ।। हाथ अब तो दुआ में उठाए बशर । जाग कर जो उन्हें है सुलाए बशर ।। प्रेम के रंग ध्वज में भरे तो दिखें । प्रेम करके यहाँ पर दिखाए बशर ।। वीरता एकता का परम चिन्ह है । हाथ जो यह तिरंगा उठाए बशर ।। जाति की ये सियासत अगर खत्म हो । मुल्क़ आज़ाद अपना बताए बशर ।। वो कदम देख पीछे करे आज क्यों । जब वतन आज उसको बुलाए बशर ।। १४/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- शीश ध्वज को सदा ही झुकाए बशर । आन पर जान तक सब लुटाए बशर ।। याद उनको कभी तो किया कर बशर । शीश जो है वतन पर कटाए बशर ।।