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धन-दौलत का, महबूबा के ख़्वाबों का, क्या करूॅं मैं,

धन-दौलत का, महबूबा के ख़्वाबों का,
क्या करूॅं मैं, इन झूठे बहकावों का।
ज़िंदगी का सबब, अक्षरों में मिला मुझे,
मैं तो प्रेमी हूॅं, इन मासूम क़िताबों का।।

©YOGIII
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